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आ꣡ प꣢वमान सुष्टु꣣तिं꣢ वृ꣣ष्टिं꣢ दे꣣वे꣢भ्यो꣣ दु꣡वः꣢ । इ꣣षे꣡ प꣢वस्व सं꣣य꣡त꣢म् ॥९०६॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

आ पवमान सुष्टुतिं वृष्टिं देवेभ्यो दुवः । इषे पवस्व संयतम् ॥९०६॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ꣢ । प꣣वमान । सुष्टुति꣢म् । सु꣣ । स्तुति꣢म् । वृ꣣ष्टि꣢म् । दे꣣वे꣡भ्यः꣢ । दु꣡वः꣢꣯ । इ꣣षे꣢ । प꣣वस्व । सं꣡यत꣢म् । स꣣म् । य꣡त꣢꣯म् ॥९०६॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 906 | (कौथोम) 3 » 1 » 5 » 3 | (रानायाणीय) 5 » 2 » 2 » 3


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अब परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (पवमान) चित्तशोधक परमेश्वर ! आप (देवेभ्यः) हम प्रकाशयुक्त उपासकों के लिए (इषे) अभीष्टसिद्धि के अर्थ (सुष्टुतिम्) शुभ स्तुतियुक्त अर्थात् सुप्रशंसित (वृष्टिम्) आनन्दवर्षा को, (दुवः) सेवा की भावना को और (संयतम्) संयम की भावना को (आ पवस्व) प्राप्त कराइये ॥३॥

भावार्थभाषाः -

उपासकों को परमेश्वर की उपासना से परम आनन्द, दीनों की सेवा में रस और विषयों से मन तथा इन्द्रियों का निग्रह प्राप्त होता है ॥३॥ इस खण्ड में परमेश्वर का तथा उससे प्राप्त होनेवाले ब्रह्मानन्द का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है ॥ पञ्चम अध्याय में द्वितीय खण्ड समाप्त ॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ परमेश्वरः प्रार्थ्यते।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (पवमान) चित्तशोधक परमेश्वर ! त्वम् (देवेभ्यः) प्रकाशयुक्तेभ्यः उपासकेभ्यः अस्मभ्यम् (इषे) अभीष्टसिद्धये (सुष्टुतिम्) शोभनस्तुतियुक्ताम्,सुप्रशंसितामित्यर्थः (वृष्टिम्) आनन्दवर्षाम्, (दुवः) परिचर्याभावनां (संयतम्) संयमभावनां च। [संपूर्वात् यम उपरमे धातोः क्विपि रूपम्।] (आ पवस्व) आगमय ॥३॥

भावार्थभाषाः -

उपासकैः परमेश्वरोपासनया परमानन्दो, दीनानां सेवायां रसो, विषयेभ्यो मनस इन्द्रियाणां च निग्रहः प्राप्यते ॥३॥ अस्मिन् खण्डे परमेश्वरस्य ततः प्राप्यमाणस्य ब्रह्मानन्दस्य च वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन सह संगतिरस्ति ॥

टिप्पणी: १. ऋ० ९।६५।३।